Pooja Kumari
‘माता
भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ इस वेद वचनानसुार यह भूमि हमारी माता कही जाती
है। विश्व में बहुत सारे देश हैं परन्तु किसी भी देश में उस देश के वासी, देश की धरती को माता शब्द से अभिहित करे ऐसा देश भारत ही है, जिसकी भूमि की महिमा माता से कहीं भी कम नहीं । कहा भी गया है कि -
उपाध्यायान्दशचार्य
आचार्याणां शतं पिता ।
सहस्रं तु पितृन्
माता गौरवेणातिरिच्यते ।। (मनु.स्मृतिः १४५)
अर्थात्
दस उपाध्यायों से बढ़कर एक आचार्य होता है, सौ आचार्यों से बढ़कर पिता होता है और पिता से
हजार गुणा बढ़कर माता गौरवमयी होती है। भारत भूमि की महिमा अत एव सर्व जन समवेद्य
है क्योंकि इस भूमि को माता जैसा गौरवमय स्थान प्राप्त है। बड़े ही संयोग तथा
सौभाग्य की बात है कि भगवान् ने सभी अवतार के लिए इसी पुण्य प्रदेश का चयन किया
रामायण, महाभारतादि जैसे धर्मग्रन्थ इसी रत्नगर्भा वसुन्धरा
के गर्भ से उत्पन्न रत्न के रूप में सुशोभित हुए। यह भारत भूमि ऐसी है जहां सन्मतों
का स्वागत तो हुआ ही साथ ही साथ सन्मतों के खण्डन मतों का ग्रहण भी आदरपूर्वक किया
गया । एक ओर जहां आचार्य शंकर के अद्वैत मत का प्रतिपादन हुआ तो वहीं दूसरी ओर
द्वैत, द्वैताद्वैत, विशिष्टाद्वैतादि
जैसे मतों का ग्रहण भी बडें ही आदरपूर्वक रीति से किया गया । एक ओर जीवन के परम
लक्ष्य को ब्रह्म प्राप्ति के एक मात्र रूप में लिया गया वहीं दूसरी ओर चार्वाक
जैसे दार्शनिक मत का भी ग्रहण आदरपूर्वक हुआ जिन्होंने ‘ऋणं
कृत्वा घृतं पिबेत्’ जैसे वचन को उस समय कहने का साहस किया
जिस समय भारतीय जीवन अपने चरमोत्कर्षता के शीर्ष पर विराजमान था। ऐसा अद्भुत
खण्डनमण्डनात्मक सौन्दर्य और सुसंस्कृत जीवन को परिभाषित करने वाली भूमि भारत भूमि
को छोड़कर और कहीं होना अनुपपन्न ही है ।
प्रस्तुत
शोध विषय यद्यपि सभी को अभिज्ञात है तथापि पाश्चात्य अन्धानुकरण में संलिप्त
सन्ततियों को अपने देश,
अपनी जन्मभूमि के प्रति जागरित करना ही इस लेख का परमोद्देश्य है ।
आज के चाकचिक्य पूर्ण समय को देखते हुए उन सभी हनुमानों के लिए एक जामवन्त की आवश्यकता
है जो कि हनुमान् गत निहित शक्तियों को जागृत कराने में हनुमान् जी की मदद करे
क्योंकि यावत् कोई जामवन्त हनुमान् जी की उनकी शक्तियों के प्रति जागृत नहीं करते
तावत् आज के विस्मृत शक्तियुक्त हनुमान् अर्थात् आज की पीढ़ी के लोग अपनी शक्ति से
अनभिज्ञ होकर कभी भी अज्ञान रूपी समुद्र को लांघने में सक्षम नहीं हो पाएंगे। अतः
आज के परिवेश में इस शोध विषय की प्रासंगिकता सिद्ध होती है ।
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भारत ।
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भूमि ।
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वेद ।
· विश्व ।
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माता ।
VOL.14, ISSUE No.1, March 2022