Towards Excellence

(ISSN No. 0974-035X)
(An indexed refereed & peer-reviewed journal of higher education)
UGC-MALAVIYA MISSION TEACHER TRAINING CENTRE GUJARAT UNIVERSITY

मन:पर्यवज्ञान और टेलिपैथी का तुलनात्मक विश्लेषण

Authors:

Pawan Kumar Jain

Abstract:

मनुष्य की मानसिक क्षमताएं सदियों से एक रहस्य और आकर्षण का विषय रही हैं। भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान दोनों में ही इस दिशा में गहरा अनुसंधान किया गया है, जहां मानव मस्तिष्क की सीमाओं से परे जाकर उसकी अंतर्निहित शक्तियों को समझने का प्रयास किया गया है। भारतीय जैन दर्शन में मन:पर्यवज्ञानको मानसिक क्षमताओं की चरम अवस्था के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जबकि आधुनिक पश्चिमी परिप्रेक्ष्य में टेलिपैथी’ (telepathy) इसी विचार का एक वैज्ञानिक अध्ययन और विश्लेषण प्रदान करता है। यह शोधालेख में इन दोनों अवधारणाओं के बीच के अंतरों और समानताओं का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला गया है कि मन:पर्यवज्ञान और टेलिपैथी दोनों ही मानसिक संचार के असाधारण रूप हैं, लेकिन उनका आधार, प्रक्रिया, और उद्देश्य भिन्न हैं। जहां एक ओर मन:पर्यवज्ञान आत्मा की शुद्धता और आध्यात्मिक उन्नति का परिणाम है, वहीं टेलिपैथी मानसिक शक्तियों और परामनोविज्ञान की संभावनाओं पर आधारित है। टेलिपैथी को कई वैज्ञानिक प्रयोगों और अनुसंधानों का हिस्सा बनाया गया है, हालांकि अभी भी इसे पूर्ण रूप से सिद्ध नहीं किया जा सका है। इस प्रकार, मन:पर्यवज्ञान और टेलीपैथी मानसिक संचार के दो अलग-अलग रूप हैं, क्योंकि उनका दार्शनिक और वैज्ञानिक आधार अलग-अलग है।

..........

 

मनुष्य की मानसिक क्षमताएं सदियों से एक रहस्य और आकर्षण का विषय रही हैं। भारतीय दर्शन और आधुनिक विज्ञान दोनों में ही इस दिशा में गहरा अनुसंधान किया गया है, जहां मानव मस्तिष्क की सीमाओं से परे जाकर उसकी अंतर्निहित शक्तियों को समझने का प्रयास किया गया है। भारतीय जैन दर्शन में मन:पर्यवज्ञानको मानसिक क्षमताओं की चरम अवस्था के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जबकि आधुनिक पश्चिमी परिप्रेक्ष्य में टेलिपैथी’ (telepathy) इसी विचार का एक वैज्ञानिक अध्ययन और विश्लेषण प्रदान करता है। यह शोधालेख में इन दोनों अवधारणाओं के बीच के अंतरों और समानताओं का अध्ययन किया जायेगा।

मन:पर्यवज्ञान जैन दर्शन के अनुसार एक ऐसी क्षमता है जिसमें साधक बिना शब्दों के, बिना किसी बाहरी संकेत के दूसरों के मन की बात को जान सकता है। इसे केवल साधना और उच्च मानसिक विकास के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। इस ज्ञान को आत्म-संयम, ध्यान और गहन मानसिक शुद्धिकरण के माध्यम से अर्जित किया जाता है। जैन धर्म में, मन:पर्यवज्ञान को केवल आत्मिक उन्नति के उच्चतम स्तर पर पहुंचने वाले साधकों के लिए संभव माना गया है।

मन:पर्यवज्ञान के वाचक शब्द - भगवतीसूत्र1, समवायांगसूत्र2, अनुयोगद्वारसूत्र3, आवश्यकनिर्युक्ति4, षट्खण्डागम5, विशेषावश्यकभाष्य6 और नंदीसूत्र7 आदि में मन:पर्यव ज्ञान के लिए ‘‘मणपज्जव’’ शब्द का प्रयोग हुआ है। उत्तराध्यन सूत्र में ‘‘मणणाण’’ का प्रयोग हुआ है।8 उमास्वाति ने मन:पर्यायशब्द का प्रयोग किया है। जबकि पूज्यपाद ने मन:पर्ययशब्द का प्रयोग किया है।9 इस प्रकार मन:पर्यव, मन:पर्यय और मन:पर्याय इन तीन शब्दों का प्रयोग मन:पर्यवज्ञान के लिए जैन आगम-ग्रन्थों में हुआ है।

Keywords:

मन:पर्यवज्ञान, तुलनात्मक, विश्लेषण

Vol & Issue:

VOL.16, ISSUE No.4, December 2024