Sureshbhai Patel
नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र ।
येन त्वया
भारततैलपूर्णः प्रज्वालितो ज्ञानमयः प्रदीपः।।[1]
महाभारत
भारतीय संस्कृतिका विश्वकोश कहाजाता है । महाभारत में उचित हि कहा है कि, “ यन्न
भारते तन्न भारते ।”[2]
अर्थात “ जो महाभारत में नहीं वह भारत में नहीं ।” समाज जीवनकी ऐसी कोई समस्या नहीं जिनको महर्षि
व्यासने स्पर्श नहीं किया हो । महाभारतकी द्रढ़ प्रतीति थी कि – “न मानुषात्
श्रेष्ठतरं हि कश्चित् ।”[3]
व्यासजीने मानव जीवनके चार पुरुषार्थोकी विस्तृत चर्चा की है, जिसका महात्म्य
बताते हुए कहा गया है कि –
धर्मे चार्थे च
कामे च मोक्षे च भरतर्षभः ।
यदिहास्ति
तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत्क्वचित् ।।[4]
विश्वप्रसिद्ध
श्रीमद्वेदव्यास विरचित ऐतिहासिक महाभारत नामका महाकाव्य है । यह महाभारत महाकाव्य
अठ्ठारह पर्वो में और एकसो उपपर्वो में विभाजित है । बाण और सुबंधुकी गद्य कथाओं
से जाना जाता है, कि इशुकी षष्ठी सताब्दी या उनसे पूर्व उनका यह ‘शतसाहस्री’
संहिता यानेकी एक लक्ष श्लोकवाला स्वरूप प्रचलित था –
इदं शतसहस्रं हि
श्लोकानां पुण्यकर्माणाम् ।
सत्यावत्यात्मजेनेह
व्याख्यातममितौजसा ।।[5]
महाभारतके
उद्योगपर्व में ‘सनत्सुजातीय दर्शन’ नामक मर्मस्पर्शी दिव्य उपाख्यान है, वह चार
अध्याय में विभक्त और करीबन एकसो उनपचास श्लोक में वर्णित है । जिस में वैशम्पायन,
धृतराष्ट्र और सनत्सुजात यह तीन पात्र के संवाद में मर्मस्पर्शी जैसे की सृष्टि,
उत्पत्ति, मृत्यु, लोक-लोकांतर, धर्म, अधर्म, ज्ञान, तप, ब्रह्मविद्या,
ब्रह्मचर्य, ब्रह्मका स्वरुप, आत्माका स्वरुप इत्यादिका तत्त्वज्ञान प्रदर्शित
होता है ।
‘तत्वज्ञान’
शब्द में दो शब्द हे ‘तत्त्व’ और ‘ज्ञान’ तत्व = तत् + त्व अर्थात् “मानव आत्माकी वास्तविक प्रकृति या
विश्वव्यापी परमात्माके समनुरूप विराट सृष्टी या भौतिक संसार”[6]
और ‘ज्ञान’ अर्थात् ज्ञा + ल्युट् = जानना समझना अर्थात् आत्मसाक्षात्कार या परमात्मा
से मिलनकी बात सिखलाता है ![7] अथवा
तो विशेष कर उस धर्म और दर्शनकी ऊँची सच्चाईयों पर मनन से उतपन्न
ज्ञान जो मनुष्य को अपनी प्रकृति या वास्तविकताको जानना ![8] इसी
प्रकार ‘तत्वज्ञान’ शब्दका अर्थघटन हो सकता है !
समग्र विश्व के लिए अंतिम
लक्ष्य शांती और आत्यंतिक सुख है ! सुख ये भौतिक पदार्थो और परिस्थितिके आधिन नहीं
है ! यह सर्वविदित सिद्धांत है ! मानवजीवनके सनातन सुखको ढूढने जब हम निकलते है तब
निश्चिंत रूप से यह खजाना महाभारतके सनत्सुजातीय दर्शन में छुपा हुआ है यह
स्वीकारना पड़ेगा यह सनातन ज्ञानका आदर्श आधुनिक समाजको अपनी प्रासंगिकता पूर्ण
करता है !
[1]. महाभारत महात्म्य, महाभारत,
गीताप्रेस गोरखपुर ।
[2]. व्यासस्तुति, महाभारत,
गीताप्रेस गोरखपुर ।
[3]. शान्तिपर्व : 299/20,
महाभारत, गीताप्रेस गोरखपुर ।
[4]. महाभारत महात्म्य :
63/53, महाभारत, गीताप्रेस गोरखपुर ।
[5]. महाभारत : 1/56/13, महाभारत,
गीताप्रेस गोरखपुर ।
[6]. संस्कृत-हिन्दी कोश,
मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली ।
[7]. संस्कृत-हिन्दी कोश,
मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली ।
[8]. संस्कृत-हिन्दी कोश,
मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली ।
महाभारत, सनत्सुजात, अध्यात्मज्ञान, ब्रह्मविद्या, मोक्ष ।
VOL.12, ISSUE No.2, March 2020